आज अमावस्या है. कहते हैं अमावस्या और पूर्णिमा को ध्यान करने पर बहुत जल्दी सधता है. नीचे दी विधि पर आज रात थोड़ा प्रयोग करें.
आनापानसति योग: यह विधि बुद्ध द्वारा प्रयोग की जाती थी. बुद्ध के पहले यह विधि शिव के विज्ञान भैरव तंत्र में उपस्थित थी. विज्ञान भैरव तंत्र में ध्यान की 112 विधियों का वर्णन किया गया है जिसमें साँस की विधि प्रथम है. मैंने स्वयं यह विधि मास्टर ओशो से सीखी थी. 3
इस विधि में हमें साँसों को देखना होता है. साँस जब अंदर आ रही होती है, धीरे...धीरे...धीरे, तो इसको देखिए. देखने से अर्थ है महसूस करना. अंदर आकर वो एक बिन्दु पर रूकती है क्योंकि उसे बाहर की यात्रा शुरू करनी होती है, तो वह एक क्षण के लिये रूकती है और बाहर की ओर यात्रा शुरू करती है. फिर धीरे...धीरे...धीरे बाहर निकलती है, और फिर एक क्षण के लिये रुकती है वापस अपनी यात्रा आरंभ करने के लिए. ये जो विश्राम के क्षण हैं, जहाँ साँस रुकती है, इन पर ध्यान दें. आप पाएँगे कि इन क्षणों में कोई विचार नहीं होता क्योंकि जब आप साँस नहीं ले रहे होते हैं तो मन रुक जाता है. और मन का रुकना, विचारशून्य होना ही ध्यान है.
एक बात समझें: साँस महसूस करना है बस, इसके अहसास के संबंध में कुछ सोचना नहीं है. यह अपने अंदर बार-बार बात नहीं लानी है कि, "अब साँस अंदर आ रही है." "अब बाहर जा रही है."
सबसे ज़रूरी बात यह है कि अंतराल के वे क्षण जहाँ मन रुक जाता है उन्हें स्वाभाविक रूप से आने दें, उन तक पहुँचने की जल्दी न करें, न उन्हें बलपूर्वक पैदा करें. आमतौर पर ध्यानी यही सोचते रहते हैं कि, "अब वो क्षण आने वाला है." "आ रहा है." इस जल्दबाज़ी में वे सब चूक जाते हैं. यदि पूरे समय आप यही सोचते रहे कि, “वो क्षण कब आएगा?” तो वह आ के चला भी जाएगा, और आप सोचते रह जाएँगे. तो, जब वो क्षण आए, उस क्षण में रुकें; जब फिर साँस शुरू हो, तो साँस के साथ फिर यात्रा करें. गति में रहें, यात्रा करें. यात्रा करते-करते फिर वो क्षण आये, फिर रुक जाएँ.
यह प्राचीन विधि रूपांतरण का महामंत्र है. यह सर्वाधिक प्रभावी विधियों में से एक इसलिए भी है क्योंकि साँस ही एक ऐसी चीज़ है जो हम हमेशा ही लेते रहते हैं. तो कहीं भी, सोते समय भी, इसे किया जा सकता है.
दूसरी ज़रूरी बात, आनापानसति योग प्राणायाम नहीं है यानि आपको साँसों को नियंत्रित नहीं करना है. न गहरा करना है, न उथला करना है, न रोकना है, न छोड़ना है. बस सहज रूप से उन्हें आते-जाते महसूस करना है.
यह ध्यान करते समय भी विचार आएँगे ही क्योंकि मन की पुरानी आदत है सोचना. तो विचारों के आने पर परेशान बिल्कुल न हों. जब विचारों में उलझ जाएँ और साँसों से ध्यान हट जाए, तो वापस चुपचाप उन्हें साँसों पर वापस लाएँ. यह सोचने में, पश्चाताप करने में समय व्यर्थ न करें कि, "देखो मैंने कितना समय सोचने में बिता दिया और साँस को देखना भूल गया." धीरे-धीरे अभ्यास से विचार भी आने कम हो जाएँगे.